Saturday, 30 September 2023

January 1997

मूर्ध न्यता, 
के   एकाकि  शिखर पर खड़े हो, 
     नीलगिरी से ऊँचे हो, 
        पर स्वयं से डरे हो। 
नर की तरह  न रतन, 
करते, 
  चक्र व्यूह  को रचते, 
   हमने तुमको देखा है। 
     प्रतिपल प्रति क्षण, रँग बदलते, 
   हमने तुमको पाया है। 
अपने ही पद  घा तो, 
   से तुमने स्वर्ग ठुकराया है👌
      लौटने का मार्ग स्वयं
अव रुद्ध  कर चुके हो! 
तोड़ना चाहा था हमे
  जोड़े थे हाथ, 
  करने को अपाहिज हमे, 
देखो तो तुम 
स्वयं के   पैर खो चुके हो। 

नीलगिरी
दुविधा में घिरे रहते थे, 
तुम सदा   घृणा और प्यार की, 
 असह्य पीड़ा उसे तुम दे
चुके हो! 
          करते थे प्रति दिन
अपमान जिसका
प्यार पाने का
अधिकार तुम खो चुके हो! 
   दर्शन और धर्म की
दे दे दुहाई
खोखला हमे, 
तुम कर चुके हो। 
असमर्थ हो
निरंतर दम्भ से ढक रहे हो। 
देखो क्या हुआ है? 
 हम तो फिर खड़े होकर चल
पड़े हैं और
तुम धरा पर पड़े हो। 
इति। 

Friday, 28 April 2023

sinhani baithi beech vipin mein

 सिंहनी बैठी   बीच बिपिन में, 
   घेरे  श्वान ,  शिकारी  । 
     लूँ विराम, 
     या युद्ध  करू? 
        नियम   युद्ध  का
 बराबरी है, 
सोचे थी , वो न्यारी। 
       शत्रु विजय ही नियम   
  युद्ध    का किये वार
वो मारे, 
स्वान शिकारी। 
इति।
 

Wednesday, 8 February 2023

Ab to sirf maun hai

पुरस्कृत हुई। 
प्रबुद्ध पैनल द्वारा। 

स्थिति का मौन
     अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, 
 मांगता अब कौन है! 
    कर सकें,  जो व्यक्त हैं, 
भाव वह कौन है? 

 चैतन्य न थे, 
    समय पर,     
इसका हमको बोध है। 
      
किंतु क्या! तुम को? 
   स्वयम के किये पर खेद है? 

क्या परिधि है, 
 है प्रणय की, 
       सोचता अब कौन है! 
     असंख्य  प्रज्जवलित दीप में, 
          बुझ गया कब
कौन है। 
      बुझ गयी नीरान्जन
         ह्रदय की, 
अब तो सिर्फ
मौन है। 🙏

Sunday, 22 January 2023

Ab kyu boli

मनु ने रचना शुरू किया
      अब क्यो! बोली? 
        चुप बैठ गई थी, 
तो क्यो उठ रही
ये किसकी भाषा, 
किसकी बोली? 
   🐷🐷🐷तो दबा ढेर में
आग दिये थे! 
 राख में कँहा छुपी थी
ये तेरी आँखों से
ध ध की, ये जो 
अभी अभी ज्वाला सी होली? 
   कुछ दिन चुप रह जाती, 
  कुछ और सह जाती
   अपने मन की क्यो बोली? 
    सब कुछ तो है? 
  क्या क्यो सोची समझी
 तू ने बतलाया था
मै तो सब भूली, 
  भ्रम में डाल जब
मस्ती तोड़ हमारी
  क्यो ये नई
चादर मन की खोली। 
  समय सदा ही मेरा ही था। 
   निर्णय भी मेरा था
 मेरे मन की
कोई नहीं
बोले तो अब में बोली।

Saturday, 7 January 2023

main veg hu teevrata ka

🥰  मै वेग   हूं तीव्रता का , 
जो  तोड़ दे    , मार्ग के हर 
अवरोध को आए तो कोई

मजबूर या आहत करे, 
विचार ही किया  अगर, 
जिजीविषा को कर  खंड खंड । 
मार्ग फिर बना बहुँगी वेग से। 

संकल्प लिया अगर, 
पर खंड में भी मार्ग है
ये वेग हो तो अविरल, 
फिर बहुँगी। 
रुकिए    !  अभी,  निर्णय लिया ही नही रण होगा,
विचार किया ही तो है, 
पुनः कर संकलन हर धार  का, 
वेग को स्थापित  करूँ? 
हो विलीन   अंहद नाद मे,
कल कल,  करती फिर , 
शांत सी संगीत गाती, 
वेग को कर समाहित, 
   शक्ति से गांडीव को ले हाथ मे। 
तोड़ ने के वेग की शक्ति हो, तो बह लो   कौन आता मार्ग मे जो। 
तनिक सा   विश्राम ही तो किया, 
वेग से फिर बहुँगी खुद ही के, 
सुनिश्चित मार्ग पे। 
मुक्ति का संगीत तो, शक्ति का संगीत की साधना हो, 
शांत चित का आनंद हो। 
डरे हुए को क्या शांति, 
जो

 भय युक्त हो।। 
मर्म ज्ञात हो 
वो ही बह पाया है, 
जो वेगको  कर  समाहित, 
शांत हो। 
ये ही तो जो सत्य का आनंद हो।

Dhoop kinchit lag sakti tujhe

🙏धूप किंचित लग सकती, 
तुझे हे सुत,    
छावँ न दे, 
पाऊँगी घनी। 
थाम कर कुछ कदम, 
चल संग मेरी, तर्जनी। 
       जननी हि यदि हार जाती, 
        सृष्टि बनती हि नही। 
       भागती भीड़ मे, 
        मै धविका नही बनी, 
      कुछ सोच कर ही, मै तेरी माता बनी। 
       हिंस को के इस , वन प्रांतरो मे एक बाड़ है 
     मैने चुनी। 
       कुछ सोच कर हि, मै तेरी माता बनी। 
     मूल मे यदि शक्ति है, 
     वृक्ष खुद बढ़ जायेगा, 
      शुद्ध जल लवण दो
       खुद ही जम जायेगा। 
             ये सोच कर हि, 
             मै तेरी जड़ मे जमी। 
    धूप किंचित 🥰🍇 मनु माँ विवस्वान की👍