अब क्यो! बोली?
चुप बैठ गई थी,
तो क्यो उठ रही
ये किसकी भाषा,
किसकी बोली?
🐷🐷🐷तो दबा ढेर में
आग दिये थे!
राख में कँहा छुपी थी
ये तेरी आँखों से
ध ध की, ये जो
अभी अभी ज्वाला सी होली?
कुछ दिन चुप रह जाती,
कुछ और सह जाती
अपने मन की क्यो बोली?
सब कुछ तो है?
क्या क्यो सोची समझी
तू ने बतलाया था
मै तो सब भूली,
भ्रम में डाल जब
मस्ती तोड़ हमारी
क्यो ये नई
चादर मन की खोली।
समय सदा ही मेरा ही था।
निर्णय भी मेरा था
मेरे मन की
कोई नहीं
बोले तो अब में बोली।
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