Travel Visit See
An effort from an Engineer/MBA grad to provide a window of his own trials towards satiating his wanderlust. The blog discusses offbeat destinations as this are the ramblings from a boy who travels the road less traveled. Drop in to say hi.:-)
Monday, 14 April 2025
zulm
ज़ुल्म। उन। पर जिनकी कोई। खता। नही। मूल मे। जिनके। अनुशासन। हवा। नहीं । बिना। भय। जो। सीखते । नहीं। लाठी। के। इन। की। दवा। नहीं। । मैं। क्यों। चुकाऊं कीमत। इसकी। । ऊपर। इनके अब। दवा। के साथ। राज भय भी। बढते। इस। रोग। की और कोई। दवा नहीं जान। मेरी भी । प्यारी ❤️। है। बहुत़ो। को। मेरे। बिना जीना जीने। की कोई। दवा नहीं । मैं भी इनसान। हूं भगवान बनने। का। शौक। न नहीं। 👍🙏
Pyaari tanno
प्यारी तन्नो 🌹
कृष्ण जन्मभूमि चलने का विचार
बस रुको
आना है नवाचार
तब तुम्हेँ ले
जायेंगे
माखन मिश्री
का भोग लगा कर
तन्नो हम
दही जलेबी खयेंगे
सारे जग को
भंडारे का न्योता दे आएंगे 🙏🏻🥰
Sunday, 21 January 2024
gahan vipin
गहन बिपिन की ध्वनियों को
पहचानता हूं मैं.
हर किरण से मिलते,
उल्लास को स्वीकारता हूं मैं.
अनहद नाद के स्पंदन से
स्वयं को जोड़ पाता हूं.
अहं ब्रह्मास्मी के भावार्थ को
अब बोध कर
पाता हूँ मैं.
Saturday, 30 September 2023
January 1997
मूर्ध न्यता,
के एकाकि शिखर पर खड़े हो,
नीलगिरी से ऊँचे हो,
पर स्वयं से डरे हो।
नर की तरह न रतन,
करते,
चक्र व्यूह को रचते,
हमने तुमको देखा है।
प्रतिपल प्रति क्षण, रँग बदलते,
हमने तुमको पाया है।
अपने ही पद घा तो,
से तुमने स्वर्ग ठुकराया है👌
लौटने का मार्ग स्वयं
अव रुद्ध कर चुके हो!
तोड़ना चाहा था हमे
जोड़े थे हाथ,
करने को अपाहिज हमे,
देखो तो तुम
स्वयं के पैर खो चुके हो।
नीलगिरी
दुविधा में घिरे रहते थे,
तुम सदा घृणा और प्यार की,
असह्य पीड़ा उसे तुम दे
चुके हो!
करते थे प्रति दिन
अपमान जिसका
प्यार पाने का
अधिकार तुम खो चुके हो!
दर्शन और धर्म की
दे दे दुहाई
खोखला हमे,
तुम कर चुके हो।
असमर्थ हो
निरंतर दम्भ से ढक रहे हो।
देखो क्या हुआ है?
हम तो फिर खड़े होकर चल
पड़े हैं और
तुम धरा पर पड़े हो।
इति।
Friday, 28 April 2023
sinhani baithi beech vipin mein
सिंहनी बैठी बीच बिपिन में,
घेरे श्वान , शिकारी ।
लूँ विराम,
या युद्ध करू?
नियम युद्ध का
बराबरी है,
सोचे थी , वो न्यारी।
शत्रु विजय ही नियम
युद्ध का किये वार
वो मारे,
स्वान शिकारी।
इति।
Wednesday, 8 February 2023
Ab to sirf maun hai
पुरस्कृत हुई।
प्रबुद्ध पैनल द्वारा।
स्थिति का मौन
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,
मांगता अब कौन है!
कर सकें, जो व्यक्त हैं,
भाव वह कौन है?
चैतन्य न थे,
समय पर,
इसका हमको बोध है।
किंतु क्या! तुम को?
स्वयम के किये पर खेद है?
क्या परिधि है,
है प्रणय की,
सोचता अब कौन है!
असंख्य प्रज्जवलित दीप में,
बुझ गया कब
कौन है।
बुझ गयी नीरान्जन
ह्रदय की,
अब तो सिर्फ
मौन है। 🙏
Sunday, 22 January 2023
Ab kyu boli
मनु ने रचना शुरू किया
अब क्यो! बोली?
चुप बैठ गई थी,
तो क्यो उठ रही
ये किसकी भाषा,
किसकी बोली?
🐷🐷🐷तो दबा ढेर में
आग दिये थे!
राख में कँहा छुपी थी
ये तेरी आँखों से
ध ध की, ये जो
अभी अभी ज्वाला सी होली?
कुछ दिन चुप रह जाती,
कुछ और सह जाती
अपने मन की क्यो बोली?
सब कुछ तो है?
क्या क्यो सोची समझी
तू ने बतलाया था
मै तो सब भूली,
भ्रम में डाल जब
मस्ती तोड़ हमारी
क्यो ये नई
चादर मन की खोली।
समय सदा ही मेरा ही था।
निर्णय भी मेरा था
मेरे मन की
कोई नहीं
बोले तो अब में बोली।
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